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देश में सड़क दुर्घटनाओं की तुलना में उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाएं लगभग दोगुनी, राज्य में सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम, व्यापक जनजागरूकता के साथ शासन स्तर पर गंभीर प्रयासों की आवश्यकता.

प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन डॉ. महेश कुरियाल ने कहा कि अगर लोग सड़कों पर अपनी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार बनें तो 80 फीसदी सड़क दुर्घटनाओं और 80 फीसदी मौतों को रोका जा सकता है।

इसके लिए यातायात नियमों के कड़ाई से पालन के साथ-साथ हेलमेट, सीटबेल्ट और ओवरस्पीड जैसे पहलुओं को लेकर व्यवहार में सुधार लाने की जरूरत है।

भारत में दुनिया के वाहनों का एक प्रतिशत है, लेकिन दुनिया की सड़क दुर्घटनाओं का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा भारत में है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लिए यह विशेष रूप से एक बड़ी चुनौती है।

एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा कि लोगों के व्यवहार और यातायात नियमों के पालन के साथ-साथ सड़क सुरक्षा के मुद्दे पर सरकारी तंत्र को जवाबदेह बनाने की जरूरत है।

उत्तराखंड में ओवरलोडिंग के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के पीछे पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन की कमी भी एक प्रमुख कारण है, इसे ठीक करना सरकार की जिम्मेदारी है।

प्रदेश में हर साल करीब एक हजार लोगों की सड़क हादसों में मौत हो जाती है।

लेकिन सरकार सहानुभूति, मुआवजे और जांच के आदेश से आगे नहीं बढ़ पा रही है।

नौटियाल ने कहा कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार को सभी संबंधित विभागों और नागरिकों को साथ लेकर तमिलनाडु जैसा मिशन शुरू करना चाहिए, ताकि इन दुर्घटनाओं को कम किया जा सके।

राज्य आपदा मोचन बल की जनसंपर्क अधिकारी, निरीक्षक ललिता नेगी ने सड़क हादसों के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि सरकार के स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

यातायात नियमों का पालन करने, शराब पीकर वाहन न चलाने सहित अन्य पहलुओं पर लोगों को जागरूक किया जाए।

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर जनभागीदारी से ही प्रशासन के प्रयास सफल होंगे।

अपने कॉलेज का उदाहरण देते हुए चमन लाल (पीजी) कॉलेज के प्रिंसिपल सुशील उपाध्याय ने सुझाव दिया।

अगर पूरे राज्य में छात्रों को बिना हेलमेट और ड्राइविंग लाइसेंस के कॉलेजों में प्रवेश नहीं दिया जाता है।

तो इससे भी फर्क पड़ सकता है, उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन के साधनों की कमी और खराब सड़कों को भी सड़क दुर्घटनाओं को रोकने में एक बड़ी चुनौती बताया।

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