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Bangladesh News: क्‍या भारत की वजह से खतरे में है बांग्‍लादेश प्रधानमंत्री शेख हसीना की राजनीति ? कट्टरपंथियों का गुस्‍सा पड़ेगा भारी

ढाका: बांग्‍लादेश में साल 2023 में चुनाव होने हैं और इसके एक साल बाद यानी 2024 में कर्ज चुकाने का समय शुरू हो जाएगा। जो देश आज से 4-5 साल पहले तक राजनीतिक पंडितों से वाह-वाही लूटता था, वही आज उनकी आलोचनाओं को सुनने के लिए मजबूर है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए भी स्थितियां मुश्किल होती जा रही हैं। हसीना, बांग्‍लादेश की वो नेता हैं जो न सिर्फ देश में लोकप्रिय हैं बल्कि विदेशों में भी लोग उनकी बहुत तारीफ करते हैं। लेकिन अब ऐसा लगता है कि बांग्‍लादेश और हसीना दोनों के लिए काफी मुश्किल समय आने वाला है। राजनीतिक तौर पर अगर हसीना अपनी जमीन खोती नजर आ रही हैं तो आर्थिक और सामाजिक तौर पर उनका देश जूझता हुआ नजर आ रहा है। एक्‍सपर्ट्स की मानें तो इसकी वजह भारत पर निर्भरता है और इसकी वजह से हसीना के लिए समय काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है।

भारत आए थे विदेश मंत्री

पिछले महीने बांग्‍लादेश के विदेश मंत्री एके अब्‍दुल मोमिन, भारत के दौरे पर आए थे। मोमिन ऐसे समय में आए थे जब दुनियाभर के इस्‍लामिक देश बीजेपी प्रवक्‍ता नुपूर शर्मा के बयान पर भारत से कन्‍नी काटने लगे थे। बांग्‍लादेश वो इकलौता मुसलमान देश था जिसने इस पूरे एपिसोड पर कोई बयान जारी नहीं किया था। इसकी वजह से हसीना सरकार की अपने देश में भी काफी आलोचना हुई थी। कट्टरपंथी हसीना सरकार के इस रुख से खासे नाराज हैं। हालांकि मोमिन का मकसद द्विपक्षीय ज्‍वॉइन्‍ट कंसलटेटिव कमीशन (JCC) की मीटिंग में हिस्‍सा लेना था। मोमिन ने इससे पहले मई में भी भारत का दौरा किया था। उस समय उन्‍होंने गुवाहाटी में अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्‍होंने रूस से होने वाले कच्‍चे तेल के आयात पर उनका सुझाव मांगा था। बांग्‍लादेश को डर था कि कहीं रूस की वजह से देश पर प्रतिबंध न लग जाएं।

भारत पर निर्भरता

अब्‍दुल मोमिन, उस सरकार की नुमाइंदे हैं जिसने इस्‍लामिक चरमपंथियों पर नकेल कसी है, बड़े प्रतिद्वंदियों का सामना किया है और पीएम हसीना के एकाधिकार को मजबूत किया है। विशेषज्ञों की मानें तो हसीना की समस्‍या यही है कि वो राजनीतिक तौर पर भारत पर निर्भर हैं जो कि अब खुद उनके लिए एक जटिल विषय बनता जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत धीरे-धीरे खुद को एक हिंदू राष्‍ट्र साबित करने की तरफ है। यही बात पीएम शेख हसीना पर भारी पड़ने वाली है। उन्‍हें ये समझना होगा कि वो अपने देश के कट्टरपंथियों को नाराज नहीं कर सकती हैं। रोहिंग्‍या संकट हसीना के लिए एक और मुसीबत बन चुका है। हसीना को अमेरिका, चीन और भारत, इस तिकड़ी के बीच एक ‘बैलेंसिंग एक्‍ट’ अदा करना पड़ रहा है। पिछले कुछ वर्षो से वो इसे सफलतापूर्वक करती भी आ रही हैं। लेकिन रास्‍ता आसान नहीं है।

अमेरिका की तरफ से भी बांग्‍लादेश की तकलीफें कम नहीं हैं। अमेरिका ने बांग्‍लादेश पुलिस की यूनिट रैपिड एक्‍शन बटालियन पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है। ये बांग्‍लादेश पुलिस की एंटी-क्राइम और एंटी-टेररिज्‍म यूनिट है जिस पर अक्‍सर मानवाधिकार हनन के आरोप लगते रहते हैं। पिछले दिनों वॉशिंगटन में सरकार की तरफ से नया राजदूत नियुक्‍त किया गया। ये फैसला उस समय लिया गया जब विदेशी मामलों की एक स्‍टैंडिंग कमेटी ने दूतावास का दौरा करने का मन बनाया।

माहौल अच्‍छा नहीं

हसीना के लिए देश में माहौल अब अच्‍छा नहीं है। वहीं ये बात भी सच है कि अगर हसीना चुनाव हार जाती हैं तो यहां की जनता के लिए ये एक बुरा दिन होगा। देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक तौर पर काफी उथल-पुथल चल रही है और हसीना के लिए ये सब बहुत मुश्किल होने वाला है। हसीना ने जब साल 2018 का चुनाव जीता था तो उनकी पार्टी आवामी लीग पर हेराफेरी का आरोप लगा था। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि कहीं देश की स्थिति उस दौर जैसी न हो जाए जब हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान यहां पर राज कर रहे थे। उन्‍होंने एक पार्टी वाला देश तो बना लिया लेकिन साल 1974 के अकाल को काबू नहीं कर सके। हसीना के कार्यकाल में देश ने खूब आर्थिक तरक्‍की की है लेकिन ये काफी नहीं है। बांग्‍लादेश का विदेशी कर्ज जीडीपी पर 21.8 फीसदी तक बढ़ गया है। वहीं आयात पर 44 फीसदी तक खर्च बढ़ा है, फॉरेक्‍स रिजर्व 42 बिलियन डॉलर से नीचे आ गया है और बस 5 माह तक के लिए ही काफी है।

सामने हैं कई चुनौतियां

रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों ने दुनियाभर में महंगाई बढ़ा दी है। वजह साथ थी कि आखिर मोमिन को क्‍यों भारत आना पड़ा। मोमिन ये अनुरोध करने के लिए आए थे कि बांग्‍लादेशी जूट निर्यात पर जो एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगी है, उसे हटा दिया जाए। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बांग्‍लादेश का आर्थिक विकास असाधारण रहा है लेकिन आर्थिक चमत्‍कार की उम्‍मीद करना बेमानी होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि देश के जिस लोकतंत्र के लिए हसीना तालियां बजाती हैं, वो खुद भ्रष्‍ट है। हसीना ने ये तय कर लिया है कि न तो इस्‍लामिक और न ही विपक्षी पार्टी को साफ चुनावों का मौका मिले और यही बात उनके खिलाफ हो सकती है। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ा खतरा वो लोग हैं जो गलत तरीके से पैसा कमाते हैं। फिलहाल ये देखना होगा कि हसीना कैसे चुनौतियों का सामना करती हैं।

 

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